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﴾بِسْمِ اللهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ﴿ |
١ |
3. Das Alphabet |
٣) |
Anfangsstellung |
Mittelstellung |
Endstellung |
Isolierte Stellung |
Transliteration |
Name des Buchstabens |
ا |
ـا |
ـا |
ا |
ā |
Alif |
بـ |
ـبـ |
ـب |
ب |
b |
Bā′ |
تـ |
ـتـ |
ـت |
ت |
t |
Tā′ |
ثـ |
ـثـ |
ـث |
ث |
ṯ |
Ṯā′ |
جـ |
ـجـ |
ـج |
ج |
ǧ |
Ǧīm |
حـ |
ـحـ |
ـح |
ح |
ḥ |
Ḥā′ |
خـ |
ـخـ |
ـخ |
خ |
ḫ |
Ḫā′ |
د |
ـد |
ـد |
د |
d |
Dāl |
ذ |
ـذ |
ـذ |
ذ |
ḏ |
Ḏāl |
ر |
ـر |
ـر |
ر |
r |
Rā′ |
ز |
ـز |
ـز |
ز |
z |
Zāy |
سـ |
ـسـ |
ـس |
س |
s |
Sīn |
شـ |
ـشـ |
ـش |
ش |
š |
Šīn |
صـ |
ـصـ |
ـص |
ص |
ṣ |
Ṣād |
ضـ |
ـضـ |
ـض |
ض |
ḍ |
Ḍād |
طـ |
ـطـ |
ـط |
ط |
ṭ |
Ṭā′ |
ظـ |
ـظـ |
ـظ |
ظ |
ẓ |
Ẓā′ |
عـ |
ـعـ |
ـع |
ع |
` |
cAin |
غـ |
ـغـ |
ـغ |
غ |
ġ |
Ġain |
فـ |
ـفـ |
ـف |
ف |
f |
Fā′ |
قـ |
ـقـ |
ـق |
ق |
q |
Qāf |
كـ |
ـكـ |
ـك |
ك |
k |
Kāf |
لـ |
ـلـ |
ـل |
ل |
l |
Lām |
مـ |
ـمـ |
ـم |
م |
m |
Mīm |
نـ |
ـنـ |
ـن |
ن |
n |
Nūn |
هـ |
ـهـ |
ـه |
ە |
h |
Hā′ |
و |
ـو |
ـو |
و |
w, ū |
Wāw |
يـ |
ـيـ |
ـي / ـى |
ي / ى |
y, ī |
Yā′ |
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﴾بِسْمِ اللهِ الرَّحْمَٰنِ الرَّحِيمِ﴿ |
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- Der erste Buchstabe des Alphabets ist eigentlich Hamza. Da jedoch meist Alif Träger des Hamza ist, steht Alif an erster Stelle des Alphabets. Hamzaträger können auch ؤ (Wāw) oder ئـ / ـئـ / ئ (Yā′) sein. Das Hamza kann aber auch ohne Träger stehen ء.
- Da Hamza ein Konsonant ist, kann es unterschiedlich vokalisiert sein: أَنْتَ ′anta (du), أُمّ ′umm (Mutter), إِنْ ′in (wenn).
- In diesem Lehrbuch wird aus methodischen Gründen das mit Fatḥa vokalisierte Hamza über Alif im Grammatikteil stets in der Form أَ geschrieben, wenn kein Hamzat waṣl (↑L2) vorliegt.
- Alif am Ende eines Wortes kann auch den Akkusativ markieren und ist dann als »–an« zu lesen: šukran شُكْرًا (Danke).
- Bei der Transkription (Umschrift) arabischer Wörter wird in diesem Lehrbuch das Hamza in Anfangsstellung nicht berücksichtigt. Wörter wie إِنْ، أَنْتَ، أُمّ werden also mit umm, anta, in und nicht mit ′umm, ′anta, ′in wiedergegeben.
- Am Ende eines Wortes kann Yā′ (ى) ohne die Punkte darunter auch ein langes ā ausdrücken. Deshalb wird zur Unterscheidung das Yā′, wenn es als ī gesprochen wird, in der Endstellung meist mit zwei Punkten geschrieben: ي.
- Allāh (Gott) wird meist in der Form الله geschrieben. Das Šadda über dem Lām zeigt hier die Verdoppelung des Lām; das kleine Alif über dem Šadda bedeutet, daß nachfolgend ein langes ā zu sprechen ist. Allāh findet sich in vielen künstlerisch gestalteten Schriften. Diese sind aber erst mit einiger Erfahrung lesbar. So ergibt sich dann in einer kalligraphisch gestalteten Schönschrift folgendes Bild für Im Namen Gottes, des Allerbarmers:
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